यह दृश्य १९८२ में कार्तिक पूर्णिमा का है। हारमोनियम पर है मुखिया श्री रूपकिशोर दास जी। सारंगी पर श्री राम गोपाल दास जी।
यह फोटो १९८२ की है। इस साल उत्सव में निम्बार्काचार्य श्री श्रीजी महाराज आये। उनके साथ मेरी दादी यानी तब सेवायत 'श्याम प्यारी' बैठी है।
यह दृश्य भी १९८२ का है। इस साल तक रास के स्वरूपों का डोला भी लोग कन्धों पर लेकर जाते थे। इस साल के बाद ये तरीका बंद हो गया लेकिन डोला बिलकुल वैसा ही तैयार होता है। रौशनी के लिए मशालों का इस्तेमाल होता था, बाद में पेट्रोमेक्स आया। अब डोला सामान रिक्शा पर जाता है और रोशनी के लिए जेनरेटर से बिजली की झाड़ का इस्तेमाल होता है।