शनिवार, 14 जनवरी 2017

सदा के लिए राधा सर्वेश्वर प्रभु के धाम चले गए जगदगुरु निम्बार्काचार्य श्री श्रीजी महाराज


सदा के लिए राधा सर्वेश्वर प्रभु के धाम चले गए जगदगुरु निम्बार्काचार्य श्री श्रीजी महाराज
 
श्रीजी महाराज के गोलोकधाम प्रवास की खबर वृंदावन से गोपाल ने फोन पर दी। सहसा भरोसा नहीं हुआ। मैं दैनिक भास्कर के अजमेर और किशनगढ़ दफ्तर से संपर्क कर ही रहा था कि अचानक जयपुर से राजस्थान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के शोक संदेश की विज्ञप्ति मिली। भाषा एजेंसी पर भी खबर आ गई।
 


मौजूदा भारत में शायद उनके स्तर की कोई भी आध्यात्मिक शख्सियत नहीं थी। अध्यात्म में उनकी जैसी समझ, गहराई का कोई जोड़ नहीं था। 70 वर्षों से अधिक समय तक वे निम्बार्काचार्य की गद्दी पर विराजे। निम्बार्क कोट में कई बार उनके चरण पड़े। सबसे अंतिम बार 2012 में, जब बाबूजी के विशेष आग्रह पर वे निम्बार्क कोट आए और मंदिर में निम्बार्क भगवान का दष्ठौन उत्सव मना। जिस दिन महाराज जी मंदिर पधारे, उसकी पूर्व संध्या पर बाबूजी मुझे महाराजश्री से मिलने ले गए। महाराज श्री प्रसाद पा रहे थे, हमने करीब 10-15 मिनट बाहर के बरामदे में इंतजार किया। उसके तुरंत बाद उन्होंने बाबूजी को बुलवाया। वे अपने बिस्तर पर आधे लेटे हुए सिगड़ी ताप रहे थे। मैंने उन्हें माला पहनाई, बाबूजी से वे बड़ी आत्मीयता से मिले। घरेलु सी बातचीत की, मेरा परिचय होते हुए उन्होंने कहा कि वे सलेमाबाद में दैनिक भास्कर पढ़ते हैं। मैं भास्कर में काम करता हूं, यह जानकार बहुत प्रसन्न हुए। मैंने उनसे एक फोटो खींचने की अनुमति मांगी जो उन्होंने सहजता से दे दी। वह चित्र मेरे लिए एक धरोहर की तरह है।
अगले दिन महाराजश्री मंदिर पधारे। मंदिर के पूर्वी बरामदे में उनके विराजने की व्यवस्था थी। जब वे विराजमान हुए तो उनके सहज, सरल, सौम्य व्यक्तित्व और मधुर मुस्कान ने सबको मोह लिया। 

आज भी आंख बंद कर उनका स्मरण करता हूं उनकी वही छवि उभरती है, चमचमता मस्तक, निम्बार्की तिलक, धवल दाढ़ी, सिर पर चांदी के तार सरीखे बाल और मक्खन से रंग की दुशाला ओढ़े छवि तो जैसे दिमाग में सदा के लिए बस गई लगती है। 

समारोह के रूप में यह एक विद्वत सम्मेलन था और महाराज श्री अध्यक्ष।
अपनी बारी आते ही उन्होंने ऐसी सहजता से अपना वक्तव्य दिया कि मानो सब उसमें खो गए। उन्होंने बताया कि बजाजा के ऋषि बाल्मीकि स्कूल से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उस दौरान वे खेलते-खेलते अनेक बार निम्बार्क कोट प्रांगण में आ जाते। अपने बालपन में मंदिर के जयंती समारोह में उन्होंने रासलीला देखने का जिक्र किया।
निम्बार्क जयंती समारोह को लेकर बाबूजी के समर्पण, संघर्ष और प्रतिभा की उन्होंने जमकर प्रशंसा की।



यह पहला मौका नहीं था जब महाराजश्री बतौर निम्बार्काचार्य मंदिर पधारे थे, इससे पूर्व 1982 में भी महाराजश्री मंदिर आए थे। तब दादीजी यानी जिन्हें हम बाबा ही कहते थे, मौजूद थीं। महाराजश्री का ठीक 30 साल पहले और 2012 के चित्र में बस इतना अंतर था कि तब उनके सिर पर और दाढ़ी के बाल काले थे और अब बिल्कुल सफेद। उनके मुख के तेज, चैतन्यता, निश्छलता में कोई अंतर नहीं था।
दो साल पहले बाबूजी की पुस्तक यमुना एवं यमुनाष्टक का नया संस्करण आ रहा था तो बाबूजी ने उसमें विस्तार से महाराजश्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का एक अध्याय जोड़ा। सलेमाबाद स्थित निम्बार्क पीठ में उनके दर्शन की अभिलाषा मन में ही रह गई।



भीष्म पितामह की भांति मकर संक्रांति को त्यागा देह
भीष्म पितामह की भांति श्रीजी महाराज ने मकर संक्रांति में सूर्योदय के बाद अपने प्राण त्याग दिए। भीष्म को वरदान था और उनकी प्रतिज्ञा थी कि वे अपने प्राण तभी त्यागेंगे जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करेगा। महीनेभर पूस की सर्द रातें गुजर गईं। माघ शुरू होते ही दूसरे दिन सूर्य की संक्रांति आई और महाराजश्री सदा के लिए राधा सर्वेश्वर प्रभु के दिव्य धाम में चले गए।
जगदगुरु निम्बार्काचार्य श्रीजी महाराज का शनिवार यानी मकर संक्रांति को गोलोकधाम गमन हो गया। सुबह दैनिक कार्य से निवृत्त होने के बाद अचानक श्रीजी महाराज की तबीयत बिगड़ गई। युवाचार्य श्यामशरण महाराज सहित उनके शिष्यों ने तुरंत किशनगढ़ के मार्बल सिटी अस्पताल पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। श्रीजी महाराज ने सुबह नौ बजे अंतिम सांस ली।
उनके भक्त, अनुयायियों सहित श्रद्धालुओं को गहरा सदमा लगा। श्रीजी महाराज के दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ उमड़ना शुरू हो गई। देशभर से साधु संत, विभिन्न पीठों के पीठाधीश्वर सलेमाबाद के लिए रवाना हो गए। श्रीजी महाराज की पार्थिव देह को भक्तों, श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए रखा गया है। रविवार को उनका हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाएगा। मुखाग्नि सलेमाबाद पीठ के उत्तराधिकारी युवाचार्य श्यामशरण महाराज देंगे।



“श्रीजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1986 को वैशाख शुल्क प्रतिप्रदा 10 मई 1929 को सलेमाबाद गांव के श्री रामनाथ जी इंदौरिया गौड़ ब्राह्मण तथा श्रीमति सोनी बाई (स्वर्णलता) के घर हुआ। 



जन्म नक्षत्र के अनुसार उनका नाम उत्तमचंद रखा गया। एक महात्मा के सुझाव पर बाद में घरवालाें ने उनका उत्तमचंद की बजाय रतनलाल नाम रख लिया। सात जुलाई 1940 रविवार को 11 वर्ष एक माह 28 दिन की आयु में वैष्णवी दीक्षा आचार्य श्री बालकृष्ण शरण देवाचार्य से ली। 


वैष्णवी दीक्षा के बाद इनका नाम राधा सर्वेश्वरशरण पड़ा और युवराज पद पर आसीन हुए। विक्रम संवत 2000 में पांच जून 1943 में बालकृष्ण शरण देवाचार्य जी के देवलोक गमन पर आचार्य पीठ पर आरूढ़ हुए। इस समय विक्रम संवत का 2073वां साल चल रहा है मतलब वे अपनी गद्दी पर करीब 73 वर्ष विराजे। उन्होंने 35 ग्रंथों की रचना की है। श्रीजी महाराज के भक्तों की संख्या लाखों में है।”