शनिवार, 16 अगस्त 2025

मंदिर में मनाए जाने वाले प्रमुख उत्सव - श्री निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव

मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव है एक मास तक मनाया जाने वाला श्री निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव जो कार्तिक कृष्ण पंचमी से मार्गशीर्ष (अगहन) कृष्ण पंचमी तक मनाया जाता है। जैसा कि इस उत्सव के नाम से ही जाहिर है, आचार्य वृंद यानी आचार्यों के समूह की जयंती। 




इस उत्सव में संप्रदाय के अनेक आचार्यों आद्याचार्य, प्रवर्तकाचार्य, द्वाराचार्य और रसिकोपासनाचार्य के जयंती उत्सव आते हैं जैसे मंदिर के संस्थापक आचार्य बाबा बालगोविंद दास जी महाराज की जयंती कार्तिक कृष्ण पंचमी को, फिर कार्तिक कृष्ण द्वादशी को महावाणीकार हरिव्यास देवाचार्य जी जयंती, कार्तिक शुक्ल अष्टमी को स्वयंभूराम देवाचार्य जयंती, अक्षय नवमी को हंस भगवान व सनकादिक भगवान जयंती, कार्तिक शुक्ल (देवउठनी) एकादशी को माधव भट्‌टाचार्य जयंती और पूर्णिमा को निम्बार्क भगवान की जयंती आती है। दीपावली जैसे महापर्व भी इस दौरान आता है, अन्नकूट व गोपाष्टमी भी आती है, साथ ही वर्ष अन्य पर्व जैसे होली, बसंत, राधा व कृष्ण जन्मोत्सव भी इस उत्सव के दौरान मनाए जाते हैं। इस उत्सव के दौरान प्रति दिन शाम को निम्बार्क आचार्यों की चरित्र कथा होती है, समाज गायन में दिन के अनुसार महावाणी व युगल शतक और हंसवंश यश सागर आदि ग्रंथों से पद गायन होता है और नित्य रासलीलाएं होती हैं, पूर्णिमा को निम्बार्क भगवान का पंचामृत से अभिषेक दर्शन होता है, फूलबंगला बनता है, शोभायात्रा निकलती है, भंडारे होते हैं। 








हर दिन मंदिर के जगमोहन में एक सिंहासन पर बाबा गोपालदास जी के सेव्य गोपालजी और निम्बार्क भगवान के चित्रपट विराजमान होते हैं। एक खास बात यह है कि गोपालजी को महंतजी के रूप में पुकारा जाता है।

बाबा गोपालदास जी महाराज के सेवित गोपालजी यानी महंत जी

डोले में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले महंतजी

हंस भगवान, सनकादिक व नारद भगवान

निम्बार्क भगवान के अष्ट स्वरूप

निम्बार्क भगवान

कथा, समाज व रासलीला सब आंगन में होता है। निम्बार्क आचार्यों की चरित्र कथा का तरीका यह है कि कार्तिक में जिस दिन जिन आचार्य की जयंती है, उस दिन की उनकी कथा होती है और बाकी दिनों में क्रमश: कथा परंपरा के हिसाब से आगे बढ़ती है। समाज गायन में भी अलग-अलग आचार्यों की जयंती के दिन उनसे जुड़े पद गाए जाते हैं, चलसखी, सहज सुख सजनी, हेली जैसे अनेक पद गाए जाते हैं। आखिरी में दो पद रोज गाए जाते हैं-एक सेवों श्री राधारमण उदार और दूसरा जय जय श्री राधारमण विराजैं। 










रासलीला में रोजाना पहले रास और फिर लीला होती है। सबसे विशेष है गोदनावारी लीला, यह बाबा हंसदासजी की रचित लीला है। भंडारे को थार भोग भी कहते हैं यानी जिस दिन ठाकुरजी को बड़ी थाली (थार) में भोग लगता हो। द्वादशी को बूंदी, नवमी को मोहनथार, एकादशी को समा की खीर और निम्बार्क भगवान के छठी उत्सव में लड्‌डू भोग लगता है। इसे मंदिर का बड़ा उत्सव भी कहते हैं और वृंदावन के आमजन इस उत्सव के भंडारे को ही उत्सव नाम से पुकारते हैं। उत्सव एक महीने चलता है लेकिन जब तब लोग पूछते हैं कि ‘उत्सव कब को है’ यानी भंडारा कब है। भंडारे की विशेषता इसके प्रसाद में मिलने वाला लड्‌डू और सब्जी है। लड्‌डू बहुत पुरानी शैली में बनता है और देसी घी में बनने की वजह से दो-तीन हफ्ते तक खराब नहीं होता। सब्जी गड्‌ड (मिली-जुली) की होती है। नमकीन हलुए जैसी इस सब्जी को बिना पूड़ी के भी खा सकते हैं।


शोभायात्रा

मंदिर की शोभायात्रा की विशेषता यह है कि यह विगत 181 वर्षों से निकलने वाली वृंदावन की सबसे पुरानी शोभायात्राओं में से एक है। सवारी में मुख्यरूप से दो डोले होते हैं जिनमें से एक पर रासबिहारी के स्वरूप और दूसरे डोले पर बाबा गोपालदासजी के सेव्य गोपालजी का विग्रह व निम्बार्क भगवान के चित्रपट विराजमान होते हैं। वृंदावन के सभी अखाड़ों के निशान, कीर्तन मंडली, बैंडबाजे, ताशे, घोड़े, झंडे आदि शामिल रहते हैं। यह सवारी निम्बार्क कोट छीपी गली से शुरू होकर किशोरपुरा, गौतम पाड़ा, बिहारीजी, अठखंभा, बनखंडी, लोई बाजार, निधिवन, केशीघाट, वंशीवट होते हुए सुदामाकुटी पहुंचती है और फिर ज्ञानगूदड़ी, लालाबाबू, गोपीनाथ बाजार, सिंहपौर, चुंगी चौराहा, अनाजमंडी, बाजाजा होते हुए वापस मंदर पहुंचती है।













इस यात्रा में करीब 6 घंटे का वक्त लगता है। काफी पहले दोनों ही डोले कंधे पर जाते थे, श्रद्धालु भक्तगण बारीबारी डोलों को अपने कंधों पर लेकर चलते थे लेकिन अब रासबिहारी का डोला मंदिर से एक गाड़ी पर जाता है जबकि निम्बार्क भगवान (स्वामी जी) का डोला मंदिर से कंधों पर ही चलता है लेकिन सुदामा कुटी पर विश्राम के बाद एक ढकेल में लाया जाता है। रास्ते के तमाम मंदिर, दुकान व घरों के लोग सवारी की आरती उतारते हैं। किसी वक्त सवारी वंशीवट पर यमुना किनारे जाकर रेत में वृक्ष के नीचे विश्राम करती थी लेकिन सुदामा कुटी का निर्माण होने के बाद सवारी वहां जाने लगी। संयोग की बात ये है कि निम्बार्क कोट और सुदामा कुटी दोनों का निर्माण व स्थापना का समय 1924-25 ही है।

भंडारे में कीर्तन व जयकारे की परिपाटी

बड़े भंडारे के दिन जब ठाकुरजी को भोग लगता है तब समाजी मंदिर में भोग के पद गाते हैं। जब पंगत बैठने लगती है तो साधु संत कीर्तन करते हैं-सीता राम सीता राम सीता राम जय सियावर राम। राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम जय श्यामा श्याम। 





जब पत्तल डलने के बाद परोसगारी शुरू होती है तो कीर्तन होता है-सिया हरिनारायण गोविंदे, भज रामा कृष्ण गोविंदे। बोलो संतो हरि हरि, मुख पर मुरली अधर धरी।(गोविंद गोविंद गाओगे, प्रेम पदारथ पाओगे। गोविंद नाम बिसारोगे, जीती बाजी हारोगे। राम राम भज बारंबारा, चक्र सुदर्शन है रखवारा। जय जय गोपी जय जय ग्वाल, जय जय सदा बिहारी लाल।गले में तुलसी, मुख में राम, हृदय विराजत शालिगराम। जब पत्तल पर लड्‌डू, पूरी, सब्जी सब आ जाता है जब जय लगाने की शुरू होती है। 


राम कृष्णदेव की जय, राधासर्वेश्वर की जय, राधामाधव की जय, राधा रमण लालजी की जय, आनंद मनोहर की जय, रूप मनोहर की जय, वृंदावनचंद्र की जय, गोवर्धन चंद्र की जय, गोविंद देव की जय, मदनमोहन की जय, गोपीनाथ की जय, गोकुल चंद्रमा की जय, बांके बिहारी लाल की जय, वृंदावन बिहारी लाल की जय, राधाबल्लभ लाल की जय, जुगल किशोर की जय, रसिक बिहारी की जय, बिहारी बिहारिन की जय, कुंज बिहारी लाल की जय, गिरिराज धरण की जय, राधा श्याम सुंदर की जय, राधा दामोदर की जय, लाड़ली लाल की जय, रास बिहारी लाल की जय, यशोदा नंदन की जय, नंद नंदन की जय, नंदगांव बरसाना की जय, दानगढ़, मानगढ़ की जय, विलासगढ़ की जय, कामवन की जय, बद्री केदार की जय, यमुनोत्री-गंंगोत्री की जय, गिरिराज महाराज की जय, मानसी गंगा की जय, राधा कुंड-श्याम कुंड की जय, नीम गांव की जय, कमई-करहला की जय, कोकिलावन की जय, भद्रवन-भांडीरवन की जय, बेलवन-मानसरोवर की जय, गोकुल-महावन की जय, दाऊजी बदलेव की जय, चौरासी कोस ब्रज मंडल की जय, मधुपुरी अवधपुरी की जय, काशी प्रयाग की जय, गंगा-जमुना की जय, चारों धाम की जय, द्वारिकाधीश की जय,  ब्रज के वन-उपवन-सरोवर की जय, वृंदावन धाम की जय, निधिवन राज की जय, सेवा कुंज की जय, कालीदह की जय, बिहार घाट की जय, श्रृंगारवट की जय, चीरघाट की जय, केशीघाट की जय, वंशीवट की जय, गोपेश्वर महादेव की जय, सुदामा कुटी की जय, जगन्नाथ धाम की जय, रंगनाथ भगवान की जय, कात्यायनी माई की जय, मोहिनी बिहारी की जय, अटलवन की जय, रमणरेती की जय, कृष्ण बलराम की जय, चार संप्रदाय की जय, हंस भगवान की जय, सनकादिक भगवान की जय, नारद भगवान की जय, निम्बार्क भगवान की जय, निवासाचार्य की जय, द्वादश आचार्यन की जय, अष्टादश भट्‌ट आचार्यन की जय, विश्वाचार्य की जय, विलासाचार्य की जय, स्वरूपाचार्य की जय, माधवाचार्य की जय, बलभद्राचार्य की जय, पद्माचार्य की जय, श्यामाचार्य की जय, गोपालाचार्य की जय, कृपाचार्य की जय, देवाचार्य की जय, सुंदर भट्ट की जय, पद्मनाभ भट्ट देवाचार्य की जय, उपेंद्र भट्ट देवाचार्य की जय, रामचंद्र भट्ट देवाचार्य की जय, वामन भट्ट देवाचार्य की जय, कृष्णभट्ट देवाचार्य की जय, पद्माकर भट्ट देवाचार्य की जय, वाण भट्ट देवाचार्य की जय, भूरि भट्ट देवाचार्य की जय, माधव भट्ट देवाचार्य की जय, श्याम भट्ट देवाचार्य की जय, गोपाल भट्ट देवाचार्य की जय, बलभद्र भट्ट देवाचार्य की जय, गोपीनाथ भट्ट देवाचार्य की जय, केशव भट्ट देवाचार्य की जय, गांगल भट्ट देवाचार्य की जय, केशव कश्मीरी भट्ट देवाचार्य की जय, श्रीभट्ट देवाचार्य की जय, हरिव्यास देवाचार्य की जय, स्वयंभूराम देवाचार्य की जय, सभी बारह द्वाराचार्यन की जय, जगतगुरु पुरुषोत्तामाचार्य की जय, श्रीजी महाराज की जय, कर्णहर देव की जय,नारायण देव की जय,  हरिदेव की जय, श्याम देव की जय, श्याम दामोदर देव की जय, श्रुति देव की जय, सहजराम देव की जय, रामदेव की जय, ज्ञानदेव की जय, वृंदावन देव की जय, रामशरण देव की जय, धर्म देव की जय, सेवादास की जय, स्वामी गोपालदास की जय, स्वामी हंसदास की जय, गुरुदेव बाल गोविंद दास की जय, श्रृंगारी हरिदास की जय, माता श्याम प्यारी की जय, स्थान पुरुष वृन्दावन बिहारी महाराज की जय









अनंत कोटि वैष्णवन की जय, स्थान पुरुष की जय, रसोइया पुजारी की जय, कोठारी भंडारी की जय, सब सती सेवकन की जय, उनके माता पितान की जय, उनके बाल गोपाल की जय, उनके समस्त परिकर की जय, अपने-अपने गुरु गोविंद की जय। 

और अंत में जोरदार हकारे के साथ सब एक साथ दोहा पढ़ते हैं-बोलना हरे...राम कहें सुख ऊपजे, कृष्ण कहें दुःख जाय। महिमा महाप्रसाद की, पावो प्रीति लगाय।

जब पंगत आधी हो जाती है तो जयकारा लगता है जय जय श्री राधे श्याम। फिर थोड़ी देर में एक बार फिर से यही जयकारा और तीसरी बार जब जय जय श्री राधे श्याम का जयकारा लगता है तो समझिए पंगत उठ गई।

ये लीलाएं होती हैंं कार्तिक उत्सव में

कार्तिक कृष्ण द्वादशी/धनतेरस को वंशी चोरी लीला कार्तिक कृष्ण चौदस को केवट लीला, कार्तिक अमावस/दीपावली को चौसर लीला, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मूदरी चोरी लीला, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पनघट लीला, कार्तिक शुक्ल तृतीया को ब्रह्मचारी लीला, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को विदुषी लीला, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शंकर लीला, कार्तिक शुक्ल छठी को पांडे लीला, कार्तिक शुक्ल सप्तमी को राधा प्राकटय लीला, कार्तिक शुक्ल अष्टमी/गोपाष्टमी को गोचारण लीला, कार्तिक शुक्ल नवमी/अक्षय नवमी को जोगन लीला, कार्तिक शुक्ल दशमी को श्याम सगाई लीला, कार्तिक शुक्ल एकादशी/देवउठनी एकादशी को वरुण लीला, कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मान लीला, कार्तिक शुक्ल तृयोदशी को माखन चोरी लीला, कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को गोदनावारी लीला, कार्तिक पूर्णिमा सहज सुख के साथ केवल स्वरूप दर्शन, अग्रहायण कृष्ण प्रतिपदा शोभायात्रा, अग्रहायण कृष्ण द्वितीया राजदान लीला होती है। 



किसी वर्ष तिथि बढ़ने की स्थिति में चंद खिलौना, मणि खंभ और सुदामा लीला भी आवश्यकता पड़ने पर होती है। अलग-अलग वर्षों में ये तीनों लीलाएं मंदिर में हुई हैं। पिछले 30 वर्ष से स्वामी अमीचंद शर्मा की मंडली रासलीला करती है। किसी जमाने में यहां दामोदरजी, उदय राम, कन्हैयालाल, शिवदयाल-गिर्राज की रासमंडलियां भी रासलीलाएं कीं।

अन्य उत्सव

इसके अलावा नारद जयंती, निवासाचार्य जयंती (बसंत पंचमी), केशवकाश्मीरी भट्‌टदेवाचार्य, हंसदास जी महाराज जयंती, होली, रामनवमी, जन्माष्टमी, राधाष्टमी, हरिदास श्रृंगारी जी जयंती, गुरु पूर्णिमा, सावन झूला उत्सव, शरदोत्सव और अक्षय तृतीया को मंदिर का पाटोत्सव विशेष आयोजन के साथ मनाया जाता है। उत्सव के दिन आमतौर पर ठाकुर जी को विशेष पोशाक धारण होती है, कभी फूल बंगला बनता है, समाज गायन होता है, भंडारा होता है। मंदिर में गोपाल सहस्रनाम, विष्णु सहस्रनाम, महावाणी, युगल शतक, रामचरित मानस व बाल्मीकि रामायण आदि का पाठ होता है। यदाकदा श्रीमद्भागवत (कई बार 108) की सप्ताह कथा, रामकथा, भक्तमाल कथा भी होती रहती हैं।

निम्बार्क कोट मंदिर परिचय

निम्बार्क कोट , निम्बार्क संप्रदाय से सम्बद्ध वृंदावन में स्थित एक मंदिर है। यह मन्दिर बहुत छोटा होते हुए भी वृन्दावन में अपनी अलग पहचान रखता है। मंदिर के नाम में दो शब्द हैं, निम्बार्क शब्द स्पष्ट है ये आचार्य हैं और कोट माने किला यानी वह किला जहां निम्बार्क विराजमान हों लेकिन यह कोई किला नहीं है एक सामान्य इमारत है। यहाँ निम्बार्क जयन्ती के मौके पर मनाये जाने वाले एक मासीय समारोह की बहुत ख्याति है। यह उत्सव यहाँ सन 1924 से मनाया जा रहा है। सन 1923 तक यह उत्सव प्रेम गली स्थित उत्सव कुंज में मनाया जाता था। वर्ष 2023 में इस उत्सव का 180 वां आयोजन किया गया। इस उत्सव का अतिविशेष आकर्षण है वैष्णव संगीत शैली का समाज गायन।

मंदिर का मुख्य द्वार (छीपी गली की ओर)


मंदिर का पिछला द्वार (पुराना बजाजा की ओर)
निम्बार्क सम्प्रदाय चार मुख्य वैष्णव सम्प्रदायों में से एक है, इस सम्प्रदाय के अन्य नाम सनकादिक या कुमार सम्प्रदाय भी है। वैष्णव सम्प्रदाय व उनके अनुयायी वे है जो विष्णु या उनके अवतारों राम और कृष्ण को आपने ईष्ट के रूप में पूजने व मानने वाले है। ठीक वैसे ही जैसे महादेव जी (शंकर) की उपासना करने वाले शैव, देवी (शक्ति) को अपना ईष्ट मानने वाले शाक्त और गणेश जी की पूजा करने वाले गाणपत्य कहलाते हैं। बाकी के तीन वैष्णव सम्प्रदाय है-लक्ष्मी या श्री सम्प्रदाय, व्रह्म या गौडीय सम्प्रदाय और रुद्र या विष्णुस्वामी सम्प्रदाय।

मंदिर के गर्भगृह में विराजमान ठाकुर राधारमण लालजी और निम्बार्क आचार्य पंचायतन

मंदिर का आंगन व जगमोहन

ब्रज की परंपरा में सभी संप्रदायों में तीन प्रमुख आचार्य हैं-आद्याचार्य जैसे निम्बार्क संप्रदाय के मामले में हंस एवं सनकादिक, प्रवर्तकाचार्य-निम्बार्क भगवान और रसिकोपासनाचार्य हरिव्यासदेवाचार्य। निम्बार्क संप्रदाय में 12 द्वारे हैं, निम्बार्क कोट मंदिर स्वयंभूराम देवाचार्य द्वारे की परंपरा का मंदिर है। हरिव्यास देवाचार्यजी के 12 प्रमुख शिष्यों में स्वयंभूराम देवाचार्य सबसे वरिष्ठ आचार्य हैं। हालांकि इनके गुरुभाई परशुराम देवाचार्य को निम्बार्क संप्रदाय के मुख्य आचार्य पद पर आसीन किया गया। संप्रदाय की मुख्य पीठ सलेमाबाद, किशनगढ़ (राजस्थान) के निम्बार्क तीर्थ में है।

(* निम्बार्क कोट नाम का ही एक मंदिर अजमेर में पृथ्वीराज रोड पर भी है)

(# वृंदावन में हरि शब्द के आचार्य बहुत हुए हैं, तीन तो हरित्रयी कहलाते हैं-स्वामी हरिदास (बांके बिहारी के प्राकट्यकर्ता), हित हरिवंश (राधाबल्लभ के प्राकट्यकर्ता) और हरिराम व्यास (जुगल किशोर के प्राकट्यकर्ता)