मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव है एक मास तक मनाया जाने वाला श्री निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव जो कार्तिक कृष्ण पंचमी से मार्गशीर्ष (अगहन) कृष्ण पंचमी तक मनाया जाता है। जैसा कि इस उत्सव के नाम से ही जाहिर है, आचार्य वृंद यानी आचार्यों के समूह की जयंती।
हर दिन मंदिर के जगमोहन में एक सिंहासन पर बाबा गोपालदास जी के सेव्य गोपालजी और निम्बार्क भगवान के चित्रपट विराजमान होते हैं। एक खास बात यह है कि गोपालजी को महंतजी के रूप में पुकारा जाता है।
शोभायात्रा
मंदिर की शोभायात्रा की विशेषता यह है कि यह विगत 181 वर्षों से निकलने वाली वृंदावन की सबसे पुरानी शोभायात्राओं में से एक है। सवारी में मुख्यरूप से दो डोले होते हैं जिनमें से एक पर रासबिहारी के स्वरूप और दूसरे डोले पर बाबा गोपालदासजी के सेव्य गोपालजी का विग्रह व निम्बार्क भगवान के चित्रपट विराजमान होते हैं। वृंदावन के सभी अखाड़ों के निशान, कीर्तन मंडली, बैंडबाजे, ताशे, घोड़े, झंडे आदि शामिल रहते हैं। यह सवारी निम्बार्क कोट छीपी गली से शुरू होकर किशोरपुरा, गौतम पाड़ा, बिहारीजी, अठखंभा, बनखंडी, लोई बाजार, निधिवन, केशीघाट, वंशीवट होते हुए सुदामाकुटी पहुंचती है और फिर ज्ञानगूदड़ी, लालाबाबू, गोपीनाथ बाजार, सिंहपौर, चुंगी चौराहा, अनाजमंडी, बाजाजा होते हुए वापस मंदर पहुंचती है।
बड़े भंडारे के दिन जब ठाकुरजी को भोग लगता है तब समाजी मंदिर में भोग के पद गाते हैं। जब पंगत बैठने लगती है तो साधु संत कीर्तन करते हैं-सीता राम सीता राम सीता राम जय सियावर राम। राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम जय श्यामा श्याम।
राम कृष्णदेव की जय, राधासर्वेश्वर की जय, राधामाधव की जय, राधा रमण लालजी की जय, आनंद मनोहर की जय, रूप मनोहर की जय, वृंदावनचंद्र की जय, गोवर्धन चंद्र की जय, गोविंद देव की जय, मदनमोहन की जय, गोपीनाथ की जय, गोकुल चंद्रमा की जय, बांके बिहारी लाल की जय, वृंदावन बिहारी लाल की जय, राधाबल्लभ लाल की जय, जुगल किशोर की जय, रसिक बिहारी की जय, बिहारी बिहारिन की जय, कुंज बिहारी लाल की जय, गिरिराज धरण की जय, राधा श्याम सुंदर की जय, राधा दामोदर की जय, लाड़ली लाल की जय, रास बिहारी लाल की जय, यशोदा नंदन की जय, नंद नंदन की जय, नंदगांव बरसाना की जय, दानगढ़, मानगढ़ की जय, विलासगढ़ की जय, कामवन की जय, बद्री केदार की जय, यमुनोत्री-गंंगोत्री की जय, गिरिराज महाराज की जय, मानसी गंगा की जय, राधा कुंड-श्याम कुंड की जय, नीम गांव की जय, कमई-करहला की जय, कोकिलावन की जय, भद्रवन-भांडीरवन की जय, बेलवन-मानसरोवर की जय, गोकुल-महावन की जय, दाऊजी बदलेव की जय, चौरासी कोस ब्रज मंडल की जय, मधुपुरी अवधपुरी की जय, काशी प्रयाग की जय, गंगा-जमुना की जय, चारों धाम की जय, द्वारिकाधीश की जय, ब्रज के वन-उपवन-सरोवर की जय, वृंदावन धाम की जय, निधिवन राज की जय, सेवा कुंज की जय, कालीदह की जय, बिहार घाट की जय, श्रृंगारवट की जय, चीरघाट की जय, केशीघाट की जय, वंशीवट की जय, गोपेश्वर महादेव की जय, सुदामा कुटी की जय, जगन्नाथ धाम की जय, रंगनाथ भगवान की जय, कात्यायनी माई की जय, मोहिनी बिहारी की जय, अटलवन की जय, रमणरेती की जय, कृष्ण बलराम की जय, चार संप्रदाय की जय, हंस भगवान की जय, सनकादिक भगवान की जय, नारद भगवान की जय, निम्बार्क भगवान की जय, निवासाचार्य की जय, द्वादश आचार्यन की जय, अष्टादश भट्ट आचार्यन की जय, विश्वाचार्य की जय, विलासाचार्य की जय, स्वरूपाचार्य की जय, माधवाचार्य की जय, बलभद्राचार्य की जय, पद्माचार्य की जय, श्यामाचार्य की जय, गोपालाचार्य की जय, कृपाचार्य की जय, देवाचार्य की जय, सुंदर भट्ट की जय, पद्मनाभ भट्ट देवाचार्य की जय, उपेंद्र भट्ट देवाचार्य की जय, रामचंद्र भट्ट देवाचार्य की जय, वामन भट्ट देवाचार्य की जय, कृष्णभट्ट देवाचार्य की जय, पद्माकर भट्ट देवाचार्य की जय, वाण भट्ट देवाचार्य की जय, भूरि भट्ट देवाचार्य की जय, माधव भट्ट देवाचार्य की जय, श्याम भट्ट देवाचार्य की जय, गोपाल भट्ट देवाचार्य की जय, बलभद्र भट्ट देवाचार्य की जय, गोपीनाथ भट्ट देवाचार्य की जय, केशव भट्ट देवाचार्य की जय, गांगल भट्ट देवाचार्य की जय, केशव कश्मीरी भट्ट देवाचार्य की जय, श्रीभट्ट देवाचार्य की जय, हरिव्यास देवाचार्य की जय, स्वयंभूराम देवाचार्य की जय, सभी बारह द्वाराचार्यन की जय, जगतगुरु पुरुषोत्तामाचार्य की जय, श्रीजी महाराज की जय, कर्णहर देव की जय,नारायण देव की जय, हरिदेव की जय, श्याम देव की जय, श्याम दामोदर देव की जय, श्रुति देव की जय, सहजराम देव की जय, रामदेव की जय, ज्ञानदेव की जय, वृंदावन देव की जय, रामशरण देव की जय, धर्म देव की जय, सेवादास की जय, स्वामी गोपालदास की जय, स्वामी हंसदास की जय, गुरुदेव बाल गोविंद दास की जय, श्रृंगारी हरिदास की जय, माता श्याम प्यारी की जय, स्थान पुरुष वृन्दावन बिहारी महाराज की जय
और अंत में जोरदार हकारे के साथ सब एक साथ दोहा पढ़ते हैं-बोलना हरे...राम कहें सुख ऊपजे, कृष्ण कहें दुःख जाय। महिमा महाप्रसाद की, पावो प्रीति लगाय।
जब पंगत आधी हो जाती है तो जयकारा लगता है जय जय श्री राधे श्याम। फिर थोड़ी देर में एक बार फिर से यही जयकारा और तीसरी बार जब जय जय श्री राधे श्याम का जयकारा लगता है तो समझिए पंगत उठ गई।
ये लीलाएं होती हैंं कार्तिक उत्सव में
कार्तिक कृष्ण द्वादशी/धनतेरस को वंशी चोरी लीला कार्तिक कृष्ण चौदस को केवट लीला, कार्तिक अमावस/दीपावली को चौसर लीला, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मूदरी चोरी लीला, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पनघट लीला, कार्तिक शुक्ल तृतीया को ब्रह्मचारी लीला, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को विदुषी लीला, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शंकर लीला, कार्तिक शुक्ल छठी को पांडे लीला, कार्तिक शुक्ल सप्तमी को राधा प्राकटय लीला, कार्तिक शुक्ल अष्टमी/गोपाष्टमी को गोचारण लीला, कार्तिक शुक्ल नवमी/अक्षय नवमी को जोगन लीला, कार्तिक शुक्ल दशमी को श्याम सगाई लीला, कार्तिक शुक्ल एकादशी/देवउठनी एकादशी को वरुण लीला, कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मान लीला, कार्तिक शुक्ल तृयोदशी को माखन चोरी लीला, कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को गोदनावारी लीला, कार्तिक पूर्णिमा सहज सुख के साथ केवल स्वरूप दर्शन, अग्रहायण कृष्ण प्रतिपदा शोभायात्रा, अग्रहायण कृष्ण द्वितीया राजदान लीला होती है।
किसी वर्ष तिथि बढ़ने की स्थिति में चंद खिलौना, मणि खंभ और सुदामा लीला भी आवश्यकता पड़ने पर होती है। अलग-अलग वर्षों में ये तीनों लीलाएं मंदिर में हुई हैं। पिछले 30 वर्ष से स्वामी अमीचंद शर्मा की मंडली रासलीला करती है। किसी जमाने में यहां दामोदरजी, उदय राम, कन्हैयालाल, शिवदयाल-गिर्राज की रासमंडलियां भी रासलीलाएं कीं।
अन्य उत्सव
इसके अलावा नारद जयंती, निवासाचार्य जयंती (बसंत पंचमी), केशवकाश्मीरी भट्टदेवाचार्य, हंसदास जी महाराज जयंती, होली, रामनवमी, जन्माष्टमी, राधाष्टमी, हरिदास श्रृंगारी जी जयंती, गुरु पूर्णिमा, सावन झूला उत्सव, शरदोत्सव और अक्षय तृतीया को मंदिर का पाटोत्सव विशेष आयोजन के साथ मनाया जाता है। उत्सव के दिन आमतौर पर ठाकुर जी को विशेष पोशाक धारण होती है, कभी फूल बंगला बनता है, समाज गायन होता है, भंडारा होता है। मंदिर में गोपाल सहस्रनाम, विष्णु सहस्रनाम, महावाणी, युगल शतक, रामचरित मानस व बाल्मीकि रामायण आदि का पाठ होता है। यदाकदा श्रीमद्भागवत (कई बार 108) की सप्ताह कथा, रामकथा, भक्तमाल कथा भी होती रहती हैं।