निम्बार्क जयंती के दिन मंदिर में निम्बार्काचार्य के विग्रह का पंचामृत से अभिषेक होता है। गोधूली बेला में अभिषेक होने का रिवाज़ है। परम्परानुसार दूध, दही, घृत, शहद व शर्करा से वैसे ही अभिषेक होता है जैसे जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का। अभिषेक के बाद आरती होती है। फिर आचार्य प्रभु अगले पांच दिन यहीं विराजमान रहते है। छठी के दिन ही वे अपने मूल स्थान पर विराजते है। मंदिर में उनका मूल स्थान ठाकुरजी के बायीं ओर है।
अभिषेक की एक बड़ी बात ये है कि कई निम्बार्की पंचामृत ग्रहण करने तक निर्जला व्रत रखते है। बाबूजी रात में पंचामृत लेने के बाद ही कुछ भोजन करते है। अन्य लोग भी फलाहार करते है।
बुधवार, 23 नवंबर 2011
सोमवार, 21 नवंबर 2011
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
उत्सव के कुछ दुर्लभ चित्र
यह दृश्य १९८२ में कार्तिक पूर्णिमा का है। हारमोनियम पर है मुखिया श्री रूपकिशोर दास जी। सारंगी पर श्री राम गोपाल दास जी।
यह फोटो १९८२ की है। इस साल उत्सव में निम्बार्काचार्य श्री श्रीजी महाराज आये। उनके साथ मेरी दादी यानी तब सेवायत 'श्याम प्यारी' बैठी है।
यह दृश्य भी १९८२ का है। इस साल तक रास के स्वरूपों का डोला भी लोग कन्धों पर लेकर जाते थे। इस साल के बाद ये तरीका बंद हो गया लेकिन डोला बिलकुल वैसा ही तैयार होता है। रौशनी के लिए मशालों का इस्तेमाल होता था, बाद में पेट्रोमेक्स आया। अब डोला सामान रिक्शा पर जाता है और रोशनी के लिए जेनरेटर से बिजली की झाड़ का इस्तेमाल होता है।
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
मंदिर की संध्या कालीन आरती की स्तुति
स्तुति
श्री हंस च सनत्कुमारप्रभ्रतीन वीणाधरम नारदं।
निम्बादित्यगुरुं च द्वादश गुरुं श्री निवासादिकान॥
वन्दे सुन्दर भट्ट देशिक मुखान्वस्विंदु संख्या युतान।
श्री व्यासाद्धरिमध्यगा च परितः सर्वान्गुरुन्सादरम॥
हे निम्बार्क दयानिधे गुणनिधे हे भक्त चिंतामने।
हे आचार्य शिरोमने मुनि गणेराम्रग्यपादाम्बुजम॥
हे सृष्टिस्थितिपालनप्रभवन हे नाथ मायाधिपे।
हे गोवर्धन कन्दरालयविभो मां पाहि सर्वेश्वर।
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षः स्थले कौस्तुभं।
नासाग्रे वर मौक्तिकं करतले वेणु करे कंकणं॥
सर्वांगे हरीचन्दनं सुललितं कंठे च मक्तावली।
गोपस्त्रीपरिवेष्ठितो विजयते गोपालचूरामणि॥
फुल्लेंदीवर कान्ति मिंदुवदनं वर्हावतंसन प्रियं।
श्री वत्सांगमुदार कौस्तुभधरं पीताम्बर सुन्दरम॥
गोपीनां नयनोत्पलार्ची त तनुं गोगोपसंघाव्रतम।
गोविन्दं कलवेणु वादनपरं दिव्यांगभुषम भजे॥
हे राधे वृष भानु भूपतनये हे पूर्ण चंद्रानने।
हे कांते कमनीय कोकिलरवे ब्रन्दावनाधीश्वरी॥
हे मत्प्रानपरायने च रसिके हे सर्वयुथेश्वरी।
आगत्य त्वरितं प्रतप्त मणिशं मां दीनमानन्दय॥
हे राधे वृषभानुभूपतनये सर्वेश्वरी राधिके।
हे कृष्णानन पंकजभ्रमरिके कृष्ण प्रिये माधवी॥
हे वृन्दावननागरी गुणगुरो दामोदरप्रेयसी।
हे हे श्री मलललितादिक प्रियसखी प्रनाधिके पाहि माम॥
शिन्जनू पुरपादपदमयुगलामा हंसीं गतिं विभ्रतीम।
चंचतखंजनमंजुलोचनयुगां पोनोल्लसत्कंधराम॥
शोभित कांचनकंकनद्युति मिलतपानौ चलच्चामरम।
कुरवाणाम हिरराधिकोपरि सदा श्री रंगदेवीं भजे॥
श्री रंगादिसुदेविका च ललिता वैशाखिका चम्पिका।
चित्र तंग सुखिंदुलेखकपरा चाष्टो प्रधानाप्रिया॥
चान्या सन्ति प्रियात्प्रिया लघुतमानित्ये च नैमित्तके।
वन्दे त्वच चरणारविन्दनितरां दासा वयं श्रद्धया॥
स्वभावतोपास्तसमस्तदोष मशेष कल्याण गुनेकराशिम।
व्यूहांगिनं ब्रह्म परंवरेण्यम ध्यायेम कृष्णं कमलेक्षण हरिम॥
अंगे तुवामे ब्रिषभानुजा मुदाविराजमानामनुरूपसौभागाम।
सखी सह्त्रै परिसेविताम सदा स्मरेम देवीं सकलेष्टकामदाम॥
नान्यागति कृष्णपदारबिन्दात संद्रेश्यते ब्रह्मशिवादिवंदितात।
भक्तेछ्योपत्सुचिन्त्त्यविग्रहादचिन्त्यशक्तेरविचिन्त्यशासनात॥
लोकत्रये यान्यसदीहितानी तान्येव सर्वाणि मया कृतानि।
तदीय पाकावसरम विसोढुमसक्नुवन देवमुपैमी नाथ॥
वशीकृतिं यान्ति न हीन्द्रियानी बुद्धिर्नशुद्धिम समुपैति तस्मात्।
न साधनं मेस्ती तव प्रसादे दयालुभावेन बिना हरे ते॥
न धर्मनिष्ठोस्मी नचात्मवेदी न भक्तित्मा स्त्वच्चारानार्विंदे।
अकिन्चनोनन्यगति शरण्यं त्वत्पादमूलं शरणं प्रपद्ये॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
श्री हंस च सनत्कुमारप्रभ्रतीन वीणाधरम नारदं।
निम्बादित्यगुरुं च द्वादश गुरुं श्री निवासादिकान॥
वन्दे सुन्दर भट्ट देशिक मुखान्वस्विंदु संख्या युतान।
श्री व्यासाद्धरिमध्यगा च परितः सर्वान्गुरुन्सादरम॥
हे निम्बार्क दयानिधे गुणनिधे हे भक्त चिंतामने।
हे आचार्य शिरोमने मुनि गणेराम्रग्यपादाम्बुजम॥
हे सृष्टिस्थितिपालनप्रभवन हे नाथ मायाधिपे।
हे गोवर्धन कन्दरालयविभो मां पाहि सर्वेश्वर।
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षः स्थले कौस्तुभं।
नासाग्रे वर मौक्तिकं करतले वेणु करे कंकणं॥
सर्वांगे हरीचन्दनं सुललितं कंठे च मक्तावली।
गोपस्त्रीपरिवेष्ठितो विजयते गोपालचूरामणि॥
फुल्लेंदीवर कान्ति मिंदुवदनं वर्हावतंसन प्रियं।
श्री वत्सांगमुदार कौस्तुभधरं पीताम्बर सुन्दरम॥
गोपीनां नयनोत्पलार्ची त तनुं गोगोपसंघाव्रतम।
गोविन्दं कलवेणु वादनपरं दिव्यांगभुषम भजे॥
हे राधे वृष भानु भूपतनये हे पूर्ण चंद्रानने।
हे कांते कमनीय कोकिलरवे ब्रन्दावनाधीश्वरी॥
हे मत्प्रानपरायने च रसिके हे सर्वयुथेश्वरी।
आगत्य त्वरितं प्रतप्त मणिशं मां दीनमानन्दय॥
हे राधे वृषभानुभूपतनये सर्वेश्वरी राधिके।
हे कृष्णानन पंकजभ्रमरिके कृष्ण प्रिये माधवी॥
हे वृन्दावननागरी गुणगुरो दामोदरप्रेयसी।
हे हे श्री मलललितादिक प्रियसखी प्रनाधिके पाहि माम॥
शिन्जनू पुरपादपदमयुगलामा हंसीं गतिं विभ्रतीम।
चंचतखंजनमंजुलोचनयुगां पोनोल्लसत्कंधराम॥
शोभित कांचनकंकनद्युति मिलतपानौ चलच्चामरम।
कुरवाणाम हिरराधिकोपरि सदा श्री रंगदेवीं भजे॥
श्री रंगादिसुदेविका च ललिता वैशाखिका चम्पिका।
चित्र तंग सुखिंदुलेखकपरा चाष्टो प्रधानाप्रिया॥
चान्या सन्ति प्रियात्प्रिया लघुतमानित्ये च नैमित्तके।
वन्दे त्वच चरणारविन्दनितरां दासा वयं श्रद्धया॥
स्वभावतोपास्तसमस्तदोष मशेष कल्याण गुनेकराशिम।
व्यूहांगिनं ब्रह्म परंवरेण्यम ध्यायेम कृष्णं कमलेक्षण हरिम॥
अंगे तुवामे ब्रिषभानुजा मुदाविराजमानामनुरूपसौभागाम।
सखी सह्त्रै परिसेविताम सदा स्मरेम देवीं सकलेष्टकामदाम॥
नान्यागति कृष्णपदारबिन्दात संद्रेश्यते ब्रह्मशिवादिवंदितात।
भक्तेछ्योपत्सुचिन्त्त्यविग्रहादचिन्त्यशक्तेरविचिन्त्यशासनात॥
लोकत्रये यान्यसदीहितानी तान्येव सर्वाणि मया कृतानि।
तदीय पाकावसरम विसोढुमसक्नुवन देवमुपैमी नाथ॥
वशीकृतिं यान्ति न हीन्द्रियानी बुद्धिर्नशुद्धिम समुपैति तस्मात्।
न साधनं मेस्ती तव प्रसादे दयालुभावेन बिना हरे ते॥
न धर्मनिष्ठोस्मी नचात्मवेदी न भक्तित्मा स्त्वच्चारानार्विंदे।
अकिन्चनोनन्यगति शरण्यं त्वत्पादमूलं शरणं प्रपद्ये॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
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