बुधवार, 23 नवंबर 2011

जयंती के दिन समाज गायन के कुछ दृश्य

निम्बार्क जयंती के दिन मंदिर में निम्बार्काचार्य के विग्रह का पंचामृत से अभिषेक होता है। गोधूली बेला में अभिषेक होने का रिवाज़ है। परम्परानुसार दूध, दही, घृत, शहद व शर्करा से वैसे ही अभिषेक होता है जैसे जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का। अभिषेक के बाद आरती होती है। फिर आचार्य प्रभु अगले पांच दिन यहीं विराजमान रहते है। छठी के दिन ही वे अपने मूल स्थान पर विराजते है। मंदिर में उनका मूल स्थान ठाकुरजी के बायीं ओर है।

अभिषेक की एक बड़ी बात ये है कि कई निम्बार्की पंचामृत ग्रहण करने तक निर्जला व्रत रखते है। बाबूजी रात में पंचामृत लेने के बाद ही कुछ भोजन करते है। अन्य लोग भी फलाहार करते है।

























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