सोमवार, 14 अप्रैल 2014

गोस्वामी तुलसीदासजी कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि से गरुड़जी का रामकथा सुनना

कागभुसुंडि से गरुड़ जी का रामकथा सुनना

दोहा : * नाथ कृतारथ भयउँ मैं तव दरसन खगराज।
आयसु देहु सो करौं अब प्रभु आयहु केहि काज॥63 क॥
* सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस।॥
जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्ह महेस॥63 ख॥ 

चौपाई : * सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ॥
देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम॥1॥ 
* अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दुख पुंज नसावनि॥ 
सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही॥2॥ 
* सुनत गरुड़ कै गिरा बिनीता। सरल सुप्रेम सुखद सुपुनीता॥ 
भयउ तास मन परम उछाहा। लाग कहै रघुपति गुन गाहा॥3॥ 
* प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी॥ 
पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा॥4॥ 
* प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई॥5॥ 

दोहा : * बालचरित कहि बिबिधि बिधि मन महँ परम उछाह। 
रिषि आगवन कहेसि पुनि श्रीरघुबीर बिबाह॥64॥ 

चौपाई : * बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा। पुनि नृप बचन राज रस भंगा 
पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा॥1॥ 
* बिपिन गवन केवट अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा॥ 
बालमीक प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट जिमि बसे भगवाना॥2॥ 
* सचिवागवन नगर नृप मरना। भरतागवन प्रेम बहु बरना॥ 
करि नृप क्रिया संग पुरबासी। भरत गए जहाँ प्रभु सुख रासी॥3॥ 
* पुनि रघुपति बहु बिधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए॥ 
भरत रहनि सुरपति सुत करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी॥4॥ 

दोहा : * कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग। 
बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभ अगस्ति सतसंग॥65॥ 

चौपाई : * कहि दंडक बन पावनताई। गीध मइत्री पुनि तेहिं गाई॥ 
पुनि प्रभु पंचबटीं कृत बासा। भंजी सकल मुनिन्ह की त्रासा॥1॥ 
* पुनि लछिमन उपदेस अनूपा। सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा॥ 
खर दूषन बध बहुरि बखाना। जिमि सब मरमु दसानन जाना॥2॥ 
* दसकंधर मारीच बतकही। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही॥ 
पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना॥3॥ 
* पुनि प्रभु गीध क्रिया जिमि कीन्हीं। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही 
बहुरि बिरह बरनत रघुबीरा। जेहि बिधि गए सरोबर तीरा॥4॥ 

दोहा : * प्रभु नारद संबाद कहि मारुति मिलन प्रसंग। 
पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान कर भंग॥66 क॥ 
* कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरषन बास। 
बरनन बर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास॥66 ख॥ 

चौपाई : * जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिदि धाए॥
बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँति। कपिन्ह बहोरि मिला संपाती॥1॥ 
* सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा॥ 
लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा॥2॥ 
* बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥ 
आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही की कुसल सुनाई॥3॥ 
* सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥ 
मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥4॥ 

दोहा : * सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार॥67 क॥
* निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार॥67 ख॥ 


चौपाई : * निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥ 
रावन बध मंदोदरि सोका। राज बिभीषन देव असोका॥1॥ 
* सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥ 
पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता॥2॥ 
* जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥ 
कहेसि बहोरि राम अभिषेका। पुर बरनत नृपनीति अनेका॥3॥ 
* कथा समस्त भुसुंड बखानी। जो मैं तुम्ह सन कही भवानी॥ 
सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा॥4॥ 


सोरठा : * गयउ मोर संदेह सुनेउँ सकल रघुपति चरित। 
भयउ राम पद नेह तव प्रसाद बायस तिलक॥68 क॥


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