निंबार्क जयंती समारोह पर एक रिपोर्ट
निंबार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव-2014 का आयोजन सदा की तरह एक महीने 13 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चला। यह महोत्सव का 171वां आयोजन था। प्रारंभ महाराज जी (बाबा बालगोविंद दास जी) की 122वीं जयंती से हुआ। इस दिन शाम को समाज गायन हुई जिसमें साचौं श्री राधारमण, झूठौ सब संसार खासतौर पर गाया गया। 13 अक्टूबर से 20 नवंबर तक श्रीमद भागवत का सप्ताह पारायण किया गया। 20 अक्टूबर (हरिव्यास देवाचार्य जयंती) से 7 नवंबर (निंबार्क जयंती) तक हर शाम साढ़े चार से पांच बजे आचार्य चरित्र कथा में बाबू जी ने निंबार्क संप्रदाय के आचार्यों की कथा सुनाई। शाम पांच से साढ़े सात बजे तक हर रोज समाज गायन में विभिन्न आचार्यों का बधाई गायन किया गया। रात 8 बजे से हर रोज स्वामी अमीचंद शर्मा की रासमंडली ने रासलीला मंचन किया। 29 अक्टूबर को चलसखी गायन में स्वयं मुखिया रूप किशोर दास जी (चैन बिहारी कुंज के महंत व निंबार्की समाज गायन मंडली के मुखिया)शामिल हुए। 31 अक्टूबर (गोपाष्टमी व स्वयंभूराम देवाचार्य जयंती) से पूर्णिमा तक सुबह महावाणी का पाठ पारायण हुआ। इस बार यह पाठ गोपालजी ने किया, पिछले सालों तक पाठ बाबूजी करते थे। अक्षय नवमी को हंस एवं सनकादिकों की जयंती पर मंदिर में दोपहर को भंडारा भी हुआ।
निंबार्क जयंती को मंदिर के आंतरिक प्रांगण को फूलों से सजाया गया। ठाकुर श्रीराधारमण लालजी जगमोहन में पधारे। निज मंदिर में निंबार्क भगवान के विग्रह का पंचामृत से अभिषेक किया गया, पंडित विश्वंभर दयाल (विमल) के आचार्यत्व में गोपालजी ने अभिषेक किया। निंबार्क आचार्य के बधाई समाज गायन में सुदामा कुटी के महंत सुतीक्षण दास जी शामिल हुए। स्वामी कन्हैयालालजी ने ढांढ़ी बनकर निंबार्क आचार्यों व निंबार्क कोट की वंशावली व परंपरा का वर्णन किया। बाबूजी ने सभी समाजी गायकों व महंतों का दुशाला उढ़ाकर व भेंट देकर विदाई दी। प्रसाद में लोगों को समा की खीर व कुलिया में पंचामृत बांटा गया।
शोभायात्रा मंदिर प्रांगण से शाम पांच बजे उठी। इस बार बैंड बहुत जोरदार था। शोभायात्रा में 10 अखाड़ों के निशान शामिल हुए। शोभायात्रा नगर में अपने पारंपरिक रास्ते से गुजरी, सैकड़ों स्थानों पर लोगों ने ढोलों की आरती उतारी, सड़कों पर रंगोली बनाकर स्वागत, सत्कार किया। रसिक बिहारी पर गोरेलाल मंदिर के महंत किशोर दास जी ने ढोले की आरती उतारी। सुदामा कुटी में सवारी का विश्राम हुआ इस दौरान रामानंदाचार्य की बधाई के पद गाए गए और प्रसाद में लोगों को मैथी की पकौड़ी और बूंदी के लड्डू बांटे गए। लौटते हुए। लौटते समय जगन्नाथ मंदिर के पास मलूक पीठ के महंत राजेंद्र दास जी महाराज सवारी के दर्शन करने आए और उन्होंने ढोले को कंधा भी लगाया। 9 नवंबर की शाम को राजदान लीला के साथ रासलीलाओं का समापन हुआ। बाबूजी ने आरती उतारकर, दुशाला उढाकर व भंट देकर स्वरूपों व अन्य रासमंडली के सदस्यों को विदाई दी। 11 नवंबर को विद्वत गोष्ठी हुई, जिसमें राधामाधव दास जी ने अध्यक्षता की, अच्युतलाल भट्ट जी ने अचिंत्य भेदाभेद से स्वाभाविक भेदाभेद पर सारगर्भित वक्तव्य दिया। इसमें महामंडलेश्वर नवल गिरी, चतुश्वैष्णव संप्रदाय के महंत फूलडोल बिहारी दास, पुरुषोत्तम जी, सोहम आश्रम के महंत सहित एक दर्जन वक्ताओं ने निंबार्काचार्य के द्वैताद्वैत दर्शन के व्यावहारिक रूप पर अपने विचार प्रकट किए।
समापन मंदिर में फूल बंगले और विशाल संत-ब्राह्मण सेवा (भंडारे) से हुआ। इस बार इसी दिन कृपालुजी महाराज की वार्षिकी का भंडारा था जिसके चलते मंदिर में प्रसाद पाने के लिए आने वाले संत की संख्या कम रही जबकि 70 प्रतिशत से अधिक लोग पारस बांधकर ले गए।
बुधवार, 12 नवंबर 2014
मंगलवार, 12 अगस्त 2014
संध्या आरती के बाद होने वाला संकीर्तन-2
दोहा
नव-नव रंगि त्रिभंगि जै, स्याम सुअंगी स्याम।
जै राधे जै हरिप्रिये, श्री राधे सुख धाम।।
स्तोत्र
जै राधे जै राधे राधे जै राधे जै श्री राधे।
जै कृष्ण जै कृष्ण कृष्ण जै कृष्ण जै श्री कृष्ण। 1 ।
स्याम गोरी नित्य किसोरी प्रीतम जोरी श्री राधे।
रसिक रसीलो छैल छबीलो गुन गरबीलो श्री कृष्ण। 2 ।
रासविहारनि रसबिसतारनि पिय उर धारनि श्री राधे।
नव-नव रंगी नवल त्रिभंगी स्याम सुअंगी श्री कृष्ण। 3 ।
प्रान पियारी रूप उज्यारी अति सुकुंमारी श्री राधे।
मैंन मनोहर महा मोदकर सुंदर बर तर श्री कृष्ण। 4 ।
सोभा सेंनी मोहा मेंनी कोकिल बेंनी श्री राधे।
कीरतिवंता कामिनिकंता श्री भगवंता श्री कृष्ण। 5 ।
चंदा-वदनी कुंदा रदनी सोभा सदनी श्री राधे।
परम उदारा प्रभा अपारा अति सुकुंवारा श्री कृष्ण। 6 ।
हंसागवनी राजति रवनी क्रीड़ा कवनी श्री राधे।
रूपा रसाला नैंन बिसाला परम कृपाला श्री कृष्ण। 7 ।
कंचनबेली रति रस रेली अति अलबेली श्री राधे।
सब सुख सागर सब गुन आगर रूप उजागर श्री कृष्ण। 8 ।
रवनी रम्या तर तर तम्या गुण आगम्या श्री राधे।
धाम निवासी प्रभा प्रकासी सहज सुहासी श्री कृष्ण। 9 ।
शक्तयाह्लादनि अति प्रियवादनि उर उन्मादनि श्री राधे।
अंग अंग टोना सरस सलोना सुभग सुठोना श्री कृष्ण। 10 ।
राधा नामिनि गुण अभिरामिनि हरिप्रिया स्वामिनि श्री राधे।
हरे हरे हरि हरे हरे हरि हरे हरे हरि श्री कृष्ण। 11 ।
संध्या आरती के बाद होने वाला कीर्तन-1
दोहा
पराभक्ति रति वर्द्धनी, स्याम सब सुख दैनि।
रसिक मुकुटमनि राधिके, जै नव नीरज नैन।।
स्तोत्र
जयति जय राधा रसिकमनि मुकुट मन-हरनी त्रिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 1 ।।
जयति गोरी नव किसोरी सकल सुख सीमा श्रिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 2 ।।
जयति रति रस वर्द्धनी अति अद्भुता सदया हिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 3 ।।
जयति आनंद कंदनी जगबंदनी बर बदनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 4 ।।
जयति स्यामा अमित नामा वेद बिधि निर्वाचिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 5 ।।
जयति रास-बिलासिनी कल कला कोटि प्रकाशिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 6 ।।
जयति बिबिध बिहार कवनी रसिक रवनी सुभ धिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 7 ।।
जयति चंचल चारु लोचनि दिव्य दुकुला भरनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 8 ।।
जयति प्रेमा प्रेम सीमा कोकिला कल बैनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 9 ।।
जयति कंचन दिव्य अंगी नवल नीरज नैनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 10 ।।
जयति बल्लभ बल्लभा आनंद कलभा तरुनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 11 ।।
जयति नागरि गुन उजागरि प्रान धन मन हरनिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 12 ।।
जयति नौतन नित्य लीला नित्य धाम निवासिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 13 ।।
जयति गुण माधूर्य भूपा सिद्धि रूपा शक्तिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 14 ।।ॉ
जयति सुद्ध स्वभाव सीला स्यामला सुकुमारिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 15 ।।
जयति जस जग प्रचुर परिकर हरिप्रिया जीवनि जिये।
पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 16 ।
सोमवार, 14 अप्रैल 2014
गोस्वामी तुलसीदासजी कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि से गरुड़जी का रामकथा सुनना
कागभुसुंडि से गरुड़ जी का रामकथा सुनना
दोहा :
* नाथ कृतारथ भयउँ मैं तव दरसन खगराज।
आयसु देहु सो करौं अब प्रभु आयहु केहि काज॥63 क॥
* सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस।॥
जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्ह महेस॥63 ख॥
चौपाई :
* सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ॥
देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम॥1॥
* अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दुख पुंज नसावनि॥
सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही॥2॥
* सुनत गरुड़ कै गिरा बिनीता। सरल सुप्रेम सुखद सुपुनीता॥
भयउ तास मन परम उछाहा। लाग कहै रघुपति गुन गाहा॥3॥
* प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी॥
पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा॥4॥
* प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई॥5॥
दोहा :
* बालचरित कहि बिबिधि बिधि मन महँ परम उछाह।
रिषि आगवन कहेसि पुनि श्रीरघुबीर बिबाह॥64॥
चौपाई :
* बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा। पुनि नृप बचन राज रस भंगा
पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा॥1॥
* बिपिन गवन केवट अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा॥
बालमीक प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट जिमि बसे भगवाना॥2॥
* सचिवागवन नगर नृप मरना। भरतागवन प्रेम बहु बरना॥
करि नृप क्रिया संग पुरबासी। भरत गए जहाँ प्रभु सुख रासी॥3॥
* पुनि रघुपति बहु बिधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए॥
भरत रहनि सुरपति सुत करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी॥4॥
दोहा :
* कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग।
बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभ अगस्ति सतसंग॥65॥
चौपाई :
* कहि दंडक बन पावनताई। गीध मइत्री पुनि तेहिं गाई॥
पुनि प्रभु पंचबटीं कृत बासा। भंजी सकल मुनिन्ह की त्रासा॥1॥
* पुनि लछिमन उपदेस अनूपा। सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा॥
खर दूषन बध बहुरि बखाना। जिमि सब मरमु दसानन जाना॥2॥
* दसकंधर मारीच बतकही। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही॥
पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना॥3॥
* पुनि प्रभु गीध क्रिया जिमि कीन्हीं। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही
बहुरि बिरह बरनत रघुबीरा। जेहि बिधि गए सरोबर तीरा॥4॥
दोहा :
* प्रभु नारद संबाद कहि मारुति मिलन प्रसंग।
पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान कर भंग॥66 क॥
* कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरषन बास।
बरनन बर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास॥66 ख॥
चौपाई :
* जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिदि धाए॥
बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँति। कपिन्ह बहोरि मिला संपाती॥1॥
* सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा॥
लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा॥2॥
* बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥
आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही की कुसल सुनाई॥3॥
* सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥
मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥4॥
दोहा :
* सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार॥67 क॥
* निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार॥67 ख॥
चौपाई :
* निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥
रावन बध मंदोदरि सोका। राज बिभीषन देव असोका॥1॥
* सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥
पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता॥2॥
* जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥
कहेसि बहोरि राम अभिषेका। पुर बरनत नृपनीति अनेका॥3॥
* कथा समस्त भुसुंड बखानी। जो मैं तुम्ह सन कही भवानी॥
सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा॥4॥
सोरठा :
* गयउ मोर संदेह सुनेउँ सकल रघुपति चरित।
भयउ राम पद नेह तव प्रसाद बायस तिलक॥68 क॥
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