‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’
श्री निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव में सेमिनार पर रिपोर्ट
25-26 नवंबर को निम्बार्काचार्य के द्वैताद्वैत दर्शन का अन्य वैष्णव व अन्य अद्वैत दर्शनों के साथ तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुुत करने के लिए निम्बार्क कोट मंदिर में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। दो दिवसीय सेमिनार में कुल 16 लोगों ने अपने वक्तव्य दिए। पहले दिन शाम को प्रथम सत्र में तीन विद्वानों और दूसरे दिन द्वितीय व तृतीय सत्र में बाकी विद्वानों ने अपने वक्तव्य दिए। एक वक्तव्य संस्कृत और एक वक्तव्य इंग्लिश में दिया गया बाकी सभी हिंदी में थे। केवल अरुण कुमार शाद्वल यानी लल्लन भैया ने बाकायदा लिखित शोधपरक वक्तव्य पढ़ा। सेमिनार का विषय प्रवर्तन और संचालन बाबूूजी (श्री वृंदावन बिहारी जी) ने किया।
प्रथम दिन के सत्र के दौरान
सेमिनार का भूमिका बांधते और विषय प्रवर्तन करते बाबूजी
नंद कुमार आचार्य को दुशाला उढ़ाते बाबूजी
नंद कुमार आचार्य का अभिवादन करते बाबूजी
श्री गोविंदानंद तीर्थ अपना वक्तव्य देते हुए
वक्तव्य के दौरान एक अन्य मुद्रा में श्री तीर्थ
चतु:वैष्णव संप्रदाय के अध्यक्ष श्री फूलडोल बिहारी दास अपना भाषण देते हुए
वक्तव्य के दौरान अपनी ही अदा में श्री फूलडोल बिहारी दास
श्री गोविंदानंद तीर्थ जी प्रथम सत्र के समापन के बाद जाते हुए
अपना वक्तव्य समाप्त करने बाद जाते चतु:वैष्णव संप्रदाय के अध्यक्ष श्री फूलडोल बिहारी दास
दूसरे सत्र के दौरान
अपना वक्तव्य देते पहले वक्ता श्री अच्युत लाल भट्ट
वक्तव्य के दौरान एक अन्य मुद्रा में श्री अच्युत लाल भट्ट
नेत्रपाल शर्मा जिन्होंने अपना भाषण संस्कृत में दिया
श्री नेत्रपाल शर्मा अपने वक्तव्य के दौरान गंभीर मुद्रा में
श्री अरुण कुमार शाद्वल जिन्होंने अपना शोध परक लिखित वक्तव्य पढ़ा
अपने वक्तव्य के दौरान एक अन्य मुद्रा में श्री अरुण कुमार शाद्वल
तीसरा व अंतिम सत्र
सत्र के शुभारंभ में मंगलाचरण करते बाबा रसिक दास जी और गोपालजी
पं. राजाराम शास्त्री अपना वक्तव्य देते हुए
पं. राजा राम शास्त्री को दुशाला उढ़ाते लल्लन भैया
श्री किशोरी रमणाचार्य अपनी बात रखते हुए
श्री किशोरी रमणाचार्य एक अन्य मुद्रा में
प्रिया बल्लभ कुंज के सेवायत श्री विष्णु मोहन नागार्च अपनी प्रस्तुति देते हुए
श्री विष्णु मोहन नागार्च एक अन्य मुद्रा में
श्री मधुसूदन प्रभुपाद अपनी बात रखते हुए
श्री मधुसूदन प्रभुपाद की प्रस्तुति के दौरान अन्य विद्वानगण
श्री मधुसूदन प्रभुपाद अपनी वक्तव्य के दौरान एक अन्य मुद्रा में
श्री गोविंदानंद तीर्थ के बाद श्री मधुसूदन प्रभुपाद ने भी कहा कि प्रसाद लेंगे पर भेंट का लिफाफा नहीं
श्री शुद्धाद्वैत स्वामी ऐसे वक्ता थे जिन्होंने अपना वक्तव्य इंग्लिश में दिया
श्री शुद्धाद्वैत स्वामी अपने भाषण के दौरान एक अन्य मुद्रा में
श्री शुद्धाद्वैत स्वामी ने भी दुशाला व प्रसाद ग्रहण किया पर भेंट लेने से इंकार कर दिया
अपनी बारी की प्रतीक्षा में अन्य वक्तागण
श्री प्रेमदास शास्त्री अपनी बात रखते हुए
श्री प्रेमदास शास्त्री अपने वक्तव्य के दौरान एक अन्य मुद्रा में
श्री प्रेमदास शास्त्री की बातों को ध्यान से सुनते अन्य वक्तागण
श्री राधा माधव दास जी ने अपना वक्तव्य देते हुए
श्री राधामाधव दास जी अपने भाषण के दौरान एक अन्य मुद्रा में
श्री राधामाधव दास जी को दुशाला उढ़ाते लल्लन भैया
श्री नवल गिरी महामंडलेश्वर अपनी बात रखते हुए
अपनी रखने के दौरान एक अन्य मुद्रा में श्री नवल गिरी महामंडलेश्वर
सेमिनार का समापन वक्तव्य देते हुए आईओपी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर श्री शैलेंद्र नाथ पांडेय
श्री शैलेंद्र नाथ पांडेय अपनी बात रखने के दौरान एक अन्य मुद्रा में
अंत में गोपालजी ने मानस के कुछ प्रसंगों के साथ सेमिनार के विषय को जोड़ा
मानस की प्रसंगों को गाते हुए गोपालजी
सभी वक्ताओं के भाषण के बाद सेमिनार के औपचारिक समापन की घोषणा के साथ बाबूजी ने सीधे मुझसे ही सवाल करते हुए कहा कि ये तो शुरूआत थी, आने वाले वर्षों में यह क्रम जारी रहेगा।
वक्तव्य देने वाले वक्ताओं में शामिल थे-1. नंद कुमार आचार्य, 2. गोविंदानंद तीर्थ, 3. फूलडोल बिहारी दास, 4. अच्युतलाल भट्ट, 5. नेत्रपाल शर्मा (संस्कृत), 6. अरुण कुमार शाद्वल, 7. राजाराम मिश्र, 8. विष्णु मोहन नागार्च, 9. किशोरी रमण आचार्य, 10. मधुसूदन प्रभुपाद, 11. शुद्धाद्वैत स्वामी (इंग्लिश), 12. प्रेम दास शास्त्री, 13. राधा माधव दास, 14. महामंडलेश्वर नवल गिरी, 15. शैलेंद्र नाथ पांडेय और 16. गोपालजी।
सभी वक्ताओं के भाषण का सार-संक्षेप भी धीरे-धीरे यहीं उपलब्ध होगा। इंतजार कीजिए और पढ़ने के लिए बीच-बीच में देखते रहिए...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें