शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी-धनतेरस निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव

कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी/धन तेरस


वंदना
श्रीहंसञ्च सनत्कुमार प्रभृतीम् वीणाधरं नारदं,
निम्बादित्यगुरुञ्च द्वादशगुरुन् श्री श्रीनिवासादिकान्।
वन्दे सुन्दरभट्‌टदेशिकमुखान् वस्विन्दुसंख्यायुतान्, 
श्रीव्यासाध्दरिमध्यगाच्च परत: सर्वान्गुरुन्सादरम।। 1 ।।

हे निम्बार्क! दयानिधे गुणनिधे! हे भक्त चिन्तामणे!
हे आचार्यशिरोमणे! मुनिगणैरामृग्यपादाम्बुज!
हे सृष्टिस्थितिपालक! प्रभवन! हे नाथ! मायाधिप,
हे गोवर्धनकन्दरालय! विभो! मां पाहि सर्वेश्वर।। 2 ।।

शंखावतार पुरुशोत्मस्य यस्य ध्वनि शास्त् मचिन्त्य शक्ति।
यत्सस्पर्श मात्राच ध्रुव माप्त काम तम् श्री निवासं शरणम् प्रपद्ये।। 3 ।।

जय जय श्री हित सहचरी भरी प्रेम रस रंग,
प्यारी प्रियतम के सदा रहति जु अनुदित संग।
जय जय श्री हरि व्यास जु रसिकन हित अवतार,
महावानी करि सबनिको उपदेश्यो सुख सार।।

आनन्द मानन्द करम् प्रसन्नम ज्ञानस्वरूपम् निज भाव युक्तम्। 
योगीन्द्र मीड्यम भव रोग वैद्यम, श्री मद् गुरुम् नित्य महम् स्मरामि।।

भक्ति भक्त भगवन्त गुरु चतुर नाम वपु एक,
तिनके पद वन्दन किये नाशय विघ्न अनेक।।

वान्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपा सिन्धुभ्य एव च।
पतितानाम् पावनेभ्यो वैष्णवैभ्यो नमो नम:।।

पद-1
धनि धनि कृष्णा द्वादशी कार्तिक मंगल मूल।
जाने मेटी सकल सुर नर जन मन की शूल।।
कार्तिक कृष्णा द्वादशी रसिकन मन अवतंस।
श्रीभट गृह हरिव्यास पुनि प्रगटे श्री हरिहंस।।

(बड़ा मंगल)
जय जय श्री हरिव्यास हंस कुलभूषण।
रसिक राज राजेश प्रकृति मग दूषणा।।
श्री वृंदावन कुंज रहस्यरस मधुकरम्।
(श्री) श्यामा-श्याम पद-कुंज लुब्ध नित निर्भरम्।
निर्भरं नित लुब्ध पंकज पद जुु श्यामा-श्याम के।
रहत नित प्रति रहसि रस रति, नित बिहार सुधाम के।।
आदि मधि अवसान तिनको, अनन्य भक्ति अदूषणा।
जय श्री हरिव्यास हंसकुल भूषणा।।

जय जय श्री हरिव्यास युगल आज्ञा दई।
निज परिकर संयुक्त कलौ प्रगटे मई।।
रुचिर पंच रस भक्ति भक्त जीवन रचे।
ब्रज लीला निज महल निर्मल ह्वै सुख सचे।।

सचै सुुख ह्वै मध्य बाहर द्विधा रुप जुधारि के।
(श्री) प्रिया प्रीतम संग हरिप्रिया नित्य बिहार बिहारि के।।
सनकादि मारग आदि सुखनिधि, रीति सोई खंग्रई।
जै जै श्री हरिव्यास युगल आज्ञा दई।।

जय जय श्री हरिव्यास सदा सेवन किए।
भये भवार्णव पार चरण रज जिन धुए।।
महा अनुभाव सुभाव दीन सों हित करें।
प्रगट छाप परताप तापत्रय परिहरें।
परिहरें त्रय ताप तिनकी अभय छाप प्रताप सों।
भये निर्भय अभय जबसे छूटे नाना पाप सों।
चतुर व्यूह जो रूप धरि-धरि निज जनन आनंद दिए।
जय जय श्री हरिव्यास सदा सेवन किए।।

जय श्री हरिव्यास रसिक चूड़ामणि।
थाप्यो मत अविरोध, शरण भये सब दुनी।।
निर्गुण महापुराण परम धन भागवत।
पर उपकार प्रवीन करन पावन पतित।।
पतित पावन करन पनकरि पुरुष रुप जु गुनधरयो।
शरण लई जिन शीश कर धरि, जन्म मृत्यु संकट हरयो।।
कृपा करि हरिदास कीनेस दास द्वारका के धनी।
जय श्री हरिव्यास रसिक चूड़ामणी।।

पद-2
छोटा मंगल
मंगल मूरति नियमानंद।
मंगल युगल किसोर हंस वपु श्री सनकादिक आनंदकंद।।
मंगल श्री नारद मुनि मुनिवर, मंगल निम्ब दिवाकर चंद।
मंगल श्री ललितादि सखीगण, हंस-वंश सन्तन के वृंद।।
मंगल श्री वृंदावन जमुना, तट वंशीबट निकट अनंद।
मंगल नाम जपत जै श्री भट, कटत अनेक जनम के फंद।।

नमो नमो नारद मुनिराज।
विषियन प्रेमभक्ति उपदेशी, छल बल किए सबन के काज।।
जिनसों चित दे हित कीन्हों है, सो सब सुधरे साधु समाज।
(श्री) व्यास कृष्ण लीला रंग रांची, मिट गई लोक वेद की लाज।।

आज महामंगल भयो माई।
प्रगटे श्री निम्बारक स्वामी, आनंद कह्यो न जाई।।
ज्ञान वैराग्य भक्ति सबहिन को, दियो कृपा कर आई।
(श्री) प्रियासखी जन भये मन चीते, अभय निसान बजाई।।

नमो नमो जै श्री भट देव।
रसिकन अनन्य जुगल पद सेवी, जानत श्री वृंदावन भेव।।
(श्री) राधावर बिन आन न जानत, नाम रटत निशदिन यह टेव।
प्रेमरंग नागर सुख सागर श्री गुरुभक्ति शिरोमणि सेव।।

नमो नमो जै श्री हरिव्यास
नमो नमो श्री राधा माधव, राधा सर्वेश्वर सुखरास।।
नमो नमो जय श्री वृंदावन, यमुना पुलिन निकुंज निवास।
(श्री) रसिक गोविंद अभिराम श्यामघन नमो नमो रस रासविलास।।

पद-3
दोहा
जहां जुगल मंगलमयी, करत निरंतर बास।
सेऊं सो सुख रूप श्री, वृन्दाविपिन बिलास।।
पद
सेऊं श्रीवृंदाविपिन बिलास।
जहां जुगल मिलि मंगल मूरति, करत निरंतर बास।
प्रेम-प्रवाह रसिकजन प्यारे, कबहुं न छांड़त पास।
कहा कहौ भाग की (जय) श्रीभट, राधाकृष्ण रस चास।।


पद-4 (महावाणी-उत्साह सुख)
विविध कुंज वृंदाबिपिन, बिलसि मनोरम केलि।
सुनहु सहेली सोहिलो, सब सुख आज सहेली।।
पद
सहेली सुनि सोहिलो, (और) सोहिलो सब सुख आज।।
सोहिलो (श्री) वृंदाबिपिन जामें बिबिध कुंज बिलास।
जहां आनंदरुपनिधि मिलि पुजवहीं मन आस।।
सोहिलो मकरंद मुख अरविंद कौ मधु पान।
पिबत जीवत पीय पल पल तौहूं तृषित निदान।।
सोहिली ललित लता लपटि रही लूमि झूमि तमाल।
पत्र पल्लव फूल फल फबि रहे रूप रसाल।।
बदन आनंदकंद चंद कि बनी सोहिली जोति।
पुहुमि परसि प्रकास पूरन जगर जगमग होति।।
मधुर कोमल सरस रस सोहिलो कलित कपोल।
प्रान पोषहिं तोषहीं तन अंग अंग अलोल।।
मंजु जोबन मंजरी रसभरी सरस सुभाय।
ररी सौरभ सीस पिय लै धरी सोहिल गाय।।
सोहिलो सुख बिलसि हुलसत पिय कदम्ब की छाहिं।
चढ़ि चोज मनोज दोऊ उमंगे अंगन माहिं।।
सोहिलो सुख सुभग भू पर रमि रसिक सिरमौर।
रहे जकि थकि चकित चखि लखि जघन सघन सुठौर।।
सोहिली रंगभरी रसीली सुखद सांकरिखोरि।
चले चौकसि चतुरमनि तऊ ह्वै गई बुधि बौरि।।
रतिरवन के भवनकी अति बनी सोहिल गैल।
परत पग तहां प्रानपियके गये गरब गुन फैल।।
सुरति सुन्दरि सहचरी रची सेज सुमन सुदेस।
तहां सोहन मदनमोहन बिहरें सोहिल बेस।।
महामृदुल रस महल मधि सोहिलो सरद निवास।
लगे लालच रहत निसिदिन करि निरंतर बास।।
सोहिलो सुख जम्यौ जतनै रतन जोति जगाय।
नवल नेह निसंक पौढ़े अंक सों अंक लगाय।।
सोहिलो सुख रम्यौ रोमनि रोम प्रति प्रति राचि।
जदपि करत सम्भोग भोगी मिथुन मुखसों जाचि।।
सोहिली रुचि बढ़त ज्यों ज्यों चढ़त चोंप अपार।
एक तन मन विमल दोऊ बिहरयौ चहत बिहार।।
नील अरुन सु पीत मनि छबि सोहिली रति मानि।
चकित चोर भये भरे के जदपि सब गुन खानि।।
सखी सहेली सहचरी मंजरी सुंदरि बेलि।
अपने अपने ओरें कोरें रही सोहिल झेंलि।।
फूल फूलन सों फब्यो मिलि सोहिलो सनमान।
निरखि खग मृग थकित भये पग भरि न पावत जान।।
सोहिलो सुख गबर गहवर भरयौ भाव अनन्त।
लहरि लै लै लाड़ लाड़त लड़लड़ी लड़कंत।।
सोहिलो आस्वाद सुख आनंदमय अहलाद।
उमंगि उमंगि उरेंड दोऊ उर भरे उनमाद।।
सोहिली अति बनी जोबनि चिमतकारिनि बाल।
सहज सोहनि मोहनी पिय करि लई हियमाल।।
गुन प्रभा गौरांगि अदभुत सदा सोहिल सोभ।
एक छिन टारि न सकत कहुं लगे लालच लोभ।।
कहा कहों सुनि हो सखी जो बढ़यौ उर अनुराग।
प्रानप्रीतम मानई धनि अपनो सोहिल भाग।।
महा दुल्लभ हू तें दुल्लभ सोहिलो सुखसार।
एक अवलोकनि कृपा करि रहत उर भयौ हार।।
सोहिलो श्रीहरिप्रिया को सकल सुख कौ धाम।
कहत सुनत सराहहीं जे पावहीं बिसराम।।

पद-5
श्रीहरिव्यास प्रताप महा छिति मंडल नाक रसातल छायो।
निगमागम पंकज मंजु खिले, द्युति भानु उदै अघ-पुंज नशायो।।
रस स्वाति की बूंदन वृष्टि झरैं जन चातक पीवत मोह न भायो।
नव नित्य विहार अहार लहें, जस गावत गोविन्द रसिक सुहायो।।

पद-6
जै जै श्री राधारमण विराजैं।
निज लावण्य रूप निधि संग लिये,
कोटि काम छवि लाजैं।
कुंज-कुंज मिल विलसत हुलसत,
सेवत सहचरि संग समाजैं।
श्रीवृंदावन श्री हितु श्री हरिप्रिया,
चोज मनोजन काजैं।।

पद-7
सेवौं श्री राधारमण उदार।
जिन्ह श्री गोपाल दास जू सेव्यौ,
गोपाल रूप उर धार।
श्री हंसदास जू सेवत मानसी,
युगल रूप रस  सार।
तिनकी कृपा श्री गोविंद बाल (जु दिये),
सिंहासन बैठार।।

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