शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कार्तिक शुक्ल एकादशी, देवउठनी एकादशी, माधवभट्‌ट देवाचार्य जयंती निम्बार्क आचार्य वृंद जयंती महोत्सव

कार्तिक शुक्ल एकादशी देवउठनी एकादशी

वंदना
श्रीहंसञ्च सनत्कुमार प्रभृतीम् वीणाधरं नारदं,
निम्बादित्यगुरुञ्च द्वादशगुरुन् श्री श्रीनिवासादिकान्।
वन्दे सुन्दरभट्‌टदेशिकमुखान् वस्विन्दुसंख्यायुतान्, 
श्रीव्यासाध्दरिमध्यगाच्च परत: सर्वान्गुरुन्सादरम।। 1 ।।

हे निम्बार्क! दयानिधे गुणनिधे! हे भक्त चिन्तामणे!
हे आचार्यशिरोमणे! मुनिगणैरामृग्यपादाम्बुज!
हे सृष्टिस्थितिपालक! प्रभवन! हे नाथ! मायाधिप,
हे गोवर्धनकन्दरालय! विभो! मां पाहि सर्वेश्वर।। 2 ।।

शंखावतार पुरुशोत्मस्य यस्य ध्वनि शास्त् मचिन्त्य शक्ति।
यत्सस्पर्श मात्राच ध्रुव माप्त काम तम्श्री निवासभ्शनम् प्रपद्ये।। 3 ।।

जय जय श्री हित सहचरी भरी प्रेम रस रंग,
प्यारी प्रियतम के सदा रहति जु अनुदित संग।
जय जय श्री हरि व्यास जु रसीकन हित अवतार,
महावानी करि सबनिको उपदेश्यो सुख सार।।

आनन्द मानन्द करम् प्रसन्नम ज्ञानम् स्वरूपम् निज भाव युक्तम्। 
योगीन्द्र मीड्यम भव रोग वैद्यम, श्री मद् गुरुम् नित्य महम् स्मरामि।।

भक्ति भक्त भगवन्त गुरु चतुर नाम वपु एक,
इनके पद वन्दन किये नाशात विघ्न अनेक।।

वान्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपा सिन्धुभ्य एव च।
पतितानाम् पावनेभ्यो वैष्णवैभ्यो नमो नम:।।


निम्बभानु उद्योत जहं, भाव कमल परकास।
रस-पंचक मकरंद के, सेवक पद रज दास।। 1 ।।
भयो प्रकट जब निम्बरवि, गयो तिमिर अज्ञान।
नयो युगल लीला ललित, रस प्रगट्यो भुवि आन।। 2 ।।
आचारज वर अवतरे, निम्बग्राम सुख साज।
मन भायो सब जनन को, भयो बधायो आज।। 3 ।।
पुहुप बृष्टि सुरवर करें, प्रमुदित सब नर नार।
आज बधाई निम्बपुर, अरुण ऋषि दरबार।। 4 ।।

पद-1 बड़ा मंगल
दोहा
कमला-यूथ ‌विराजहीं, सेवति राधा-लाल।
सो प्रगटी जग आयके, अली माधवी बाल।।
कार्तिक शुक्ल प्रबोधनी, एकादशी रसाल।
श्रीमाधवभट प्रगट भये, भूरिभट्‌ट के लाल।।
पद
आज बधावोरी हेली रसिक सिरताज को।
मंगल गावोरी हेली, आचारज राज को।।
श्रीराजराजेश्वर आचारज, भट्‌ट श्रीभूरीलाल को।
करुणा-सिन्धु भट्ट माधव, रसिकजन प्रतिपाल को।।
प्रगटे जु हंस सुवंश मण्डन, हरण सब अघ जाल को।
है करन दान ये पद पदा, दरसावने युग लाल को।। 1 ।।

आज ये आयोरी हेली, दिवस बड़भाग ते।
भयो मनभायोरी हेली, हिय की लाग सो।।
जो लाग हिय की करी पूरण, स्वामिनी श्रीराधिका।
जग भेजी अपनी सखि माधवी, हरन जन जिय बाधिका।।
रंगदेविकी कमला अली जो, रहति तिनके संगमें।
विलसावहीं नित जुगल लालन, भीजी रतिरस रंग में।। 2 ।।

आज आनन्दरी हेली, सुवंश श्री हंस के।
गावौ री छंदरी हेली, सुकुलहिं प्रशंसके।।
परशंसिये कुल हंस सनक जु नारद नियमानन्द को।
आचार्य द्वादश, भट्‌ट नव, जो हरन जनमन फन्द को।।
नित गाय इनकी विमल कीरति, लाभ जीवन लीजिये।
प्रशंस माधवभट चरण की, करत निशिदिन जीजिये।। 3 ।।

आज भयौ है ही हेली, आनन्द कुंज में।
हर्ष छयो हैरी हेली सहेलिन पुंज में।।
है पुंज सहेलिन के जहां श्रीरंग अली की सहचरी।
असिता गुणाकरि बल्लभा, गौरांगि केशी रसभरी।।
श्री पवित्रा कुंकुमांगी, हित हरिप्रिया नामिनी।
कलामंजरी कियौ उत्सव हर्षि राधा स्वामिनी।। 4 ।।

पद-2
छोटा मंगल
मंगल मूरति नियमानंद।
मंगल युगल किसोर हंस वपु श्री सनकादिक आनंदकंद।।
मंगल श्री नारद मुनि मुनिवर, मंगल निम्ब दिवाकर चंद।
मंगल श्री ललितादि सखीगण, हंस-वंश सन्तन के वृंद।।
मंगल श्री वृंदावन जमुना, तट वंशीबट निकट अनंद।
मंगल नाम जपत जै श्री भट, कटत अनेक जनम के फंद।।
नमो नमो नारद मुनिराज।
विषियन प्रेमभक्ति उपदेशी, छल बल किए सबन के काज।।
जिनसों चित दे हित कीन्हों है, सो सब सुधरे साधु समाज।
(श्री) व्यास कृष्ण लीला रंग रांची, मिट गई लोक वेद की लाज।।
आज महामंगल भयो माई।
प्रगटे श्री निम्बारक स्वामी, आनंद कह्यो न जाई।।
ज्ञान वैराग्य भक्ति सबहिन को, दियो कृपा कर आई।
(श्री) प्रियासखी जन भये मन चीते, अभय निसान बजाई।।
नमो नमो जै श्री भट देव।
रसिकन अनन्य जुगल पद सेवी, जानत श्री वृंदावन भेव।।
(श्री) राधावर बिन आन न जानत, नाम रटत निशदिन यह टेव।
प्रेमरंग नागर सुख सागर श्री गुरुभक्ति शिरोमणि सेव।।
नमो नमो जै श्री हरिव्यास
नमो नमो श्री राधा माधव, राधा सर्वेश्वर सुखरास।।
नमो नमो जय श्री वृंदावन, यमुना पुलिन निकुंज निवास।
(श्री) रसिक गोविंद अभिराम श्यामघन नमो नमो रस रासविलास।।

श्रीमाधवभट निशिदिन गावौ।
जिनकी कृपा राधिका रीझहिं, निशिदिन टहल महलकी पावौ।।
यह अवसर फिर नाहिन पैहों, विरथा काहै याहि नसावौ।
कलामंजरी भूरी भट के सुवन-चरण-पंकज चित लावौ।।

पद-3
माधव प्रगटे कातिक मास।
शुक्लपक्ष एकादशि वासर, भयो तिमिर को नाश।।
मध्य दिवस दीक्षा दृढ़ भरी, छायौ विमल प्रकाश।
मंगलचार भयो दसहु दिशि, शोभित किए अवास।।
वन्दनवार पताका कदली, कलश मनोहर भास।
विमल बधाई श्रीवृन्दावन, माधवि-कुंज निवास।।
जय जयकार भयौ वसुधा पै, दसकी उठी सुबास।
प्रियालाल अतिशय आनन्दै, मिटी जननकी भास।।
यूथेश्वरी रंगदेवी सुनि, बाढयौ हिये हुलास।
दोउ कर जोरि ‘हर्षिप्रिया’ ठाढ़ी, चरणकमलकी आश।।

पद-4 (महावाणी उत्साह सुख 68)
दोहा
बनी ठनी सजनी सबै, सेवत तन मन दीय।
देखहु री छबि सों दोउ, रथ आरोहन कीय।।
पद
देखहु री देखहु छबि सों दोउ मनमथ रथ आरोहन कीयें।
आवत अति मनभावन सम्पथ प्रीतम प्रिया प्रेमरस पीयें।।
कोउ सखि बिमल बीजना बीजत कोउ सखि चारु चमर कर लीयें।
कोउ सखि जै जै शब्द उचारत सुमन उछारत उमगति हीयें।।
बनी ठनी छट छटी कटी की नटी चटी चहुं ओरनि छीयें।
श्री हरिप्रिया बदन-बिधु-वानिक निरखत हैं हरखत मन दीयें।।


पद-4
दोहा
नखसिख सुषमा के दोउ, रतनागर रसिकेस।
अद्भुत राधामाधवी, जोरी सहज सुदेस।।
पद
राधा माधव अद्भुत जोरी।
सदा सनातन इक रस बिहरत। अविचल नवल किसोर-किसोरी।।
नख सिख सब सुषमा रतनागर, भरत रसिकवर हृदय सरोरी।
जै श्रीभट्‌ट कटक कर कुंडल, गंड वलय मिलि लसत हिलोरी।।

पद-5

पद-6
निम्बार्क दीन बंधो, सुन पुकार मेरी।
पतितन में पतित नाथ, शरण आयो तेरी।।
तात मात भगिनि भ्रात, परिजन सुखदाई।
सबहीं सम्बन्ध त्यागि, आयो शरणाई।।
काम क्रोध लोभ मोह, दावानल भारी।
निशिदिन हों जरत नाथ, लीजिए उबारी।।
अम्बरीष भक्त जान, रक्षा करि धाई।
तैसे ही निज दास जानि, राखौ शरणाई।।
भक्त बत्सल नाथ नाम, वेदन में गायो।
‘श्री भट्‌ट’ तब चरण परसि, अभय दान पायो।।

पद-7
जै जै श्री राधारमण विराजैं।
निज लावण्य रूप निधि संग लिये,
कोटि काम छवि लाजैं।
कुंज-कुंज मिल विलसत हुलसत,
सेवत सहचरि संग समाजैं।
श्रीवृंदावन श्री हितु श्री हरिप्रिया,
चोज मनोजन काजैं।।

पद-8
सेवौं श्री राधारमण उदार।
जिन्ह श्री गोपाल दास जू सेव्यौ,
गोपाल रूप उर धार।
श्री हंसदास जू सेवत मानसी,
युगल रूप रस  सार।
तिनकी कृपा श्री गोविंद बाल (जु दिये),
सिंहासन बैठार।।


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